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Tuesday, December 28, 2010

Books of Shivraj Bhartiya





Tuesday, November 30, 2010


Sunday, March 28, 2010

आंतरो

हां रफीक


ओ बखत रो आंतरो है

कै मनां रो

कीं कह नीं सकूं

पण हां

अतरो जरूर जाणूं

थंू भी नीं भूल्यो व्हैला

टाबरपणै री उण भेळप नैं

जद

आपां गांवता

होळी री धमाळ

साथै-साथै

भेळा हुय‘र छांटता रंग

अेक दूजै माथै।

घर वाळा भी नीं ओळखता

अेक निजर में

कुण सो रफीक है

अर कुण सो राजीव

ईद रै मोकै

गळ बांथी घाल्यां

जद

आपां दोन्यू जांवता ईदगाह

तद कुण सोच्यो

कदैई

फकत फोन माथै ही

बेलांला.......ईद मुबारक......।

स्यात्

थूं भी नीं पांतर्यो व्हैला

स्काउटिंग रै

उण कैंपां नै

जद/परभात फेरी में

म्हारी बारी होंवती

तो भी थूं ही बोल्या करतो

परभाती अर रामधुन

अर ‘सर्वधर्म प्रार्थना‘ में

म्हारा होंठ भी

मतैई खुल ज्यांवता

थारै साथै-साथै

बोलण सारू

‘बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम‘

हां रफीक हां

ओ बखत रो आंतरो है

कै मनां रो

कीं कह नी सकूं

पण हां

अतरो जरूर जाणूं

उण टाबरपणै में

आपां कित्ता बडा हा।

पीड़

आपां बांटां

पन्दरै अगस्त मनावां
सालूं-साल
गावां गीत
नाचां -कूदां
गूंजावां च्यारूंमेर
आजादी रो संगीत
देस रै इतिहास री
धणी महताऊ धटना है आजादी
जिणनैं जरूर याद राखणी
पण नीं बिसराणीं
इण मोकै री दूजी घटना
जद कूक्या
पंजाब,लाहौर अर पटना
देस री नदियां रो पाणी
रातो हुग्यो
मिनखां रै लोही सूं
के मुसळमान अर के हिन्दू
सैं रो मिनखपणो सोग्यो
मिनख माथै
राखस हावी हुग्यो
खंड-खंड हुग्या
मिनख/परवार
अर
खंड-खंड हुग्यो देस।

हांती

आपां बांटां


सगळां नै

दीयाळी रो उजास

ईद री मीठास

गुरूवाणी रो परकास

अर मिनख

ताजी सांसां लेय ‘र

उडै

खुलै आकास।

पाळगोठ

पांच - च्यार घरां बिचाळै

पळज्यै

गंडकां रो परवार

पण

दो‘रा हुज्यै पळना

बडेरा मां-बाप

पांच-च्यार बेटां बिचाळै।

Wednesday, March 17, 2010

Tuesday, February 23, 2010

शिवराज भारतीय की कविता ममता रो मंदिर माँ

नोहर (राजस्थान)
लाड़ प्यार का समंदर मां
मोह-ममता का मंदिर मां
अच्छी-अच्छी बात बताती
लोरी गाए सुलाए मां
धमकाती जब करें शरारत
रूठें तब पुचकारे मां
मनुज भले बूढ़ा हो जाए
उसे समझती बच्चा मां
मां कहने से मुंह भर आता
हृदय नेह सरसाए मां
सारे तीरथ-धाम वहीं पर
जिस घर में मुस्काए मां
मां सम नहीं जगत में दूजा
परमेश्वर भी पूजे मां।
राजस्थानी से अनुवाद-
राजेश्वरी पारीक ‘मीना’
मूल कवि-शिवराज भारतीय

मूल राजस्थानी (शिवराज भारतीय ) हिंदी अनुवाद - राजेश्वरी पारीक "मीना"

रंग- रंगीला अपना देश
अजब -निराला अपना देश
मस्तक मुकुट हिमालय सोहे
सागर इसके चरणन धोये
ताल-तलैया धोरे- पर्वत
रूप सुहाना मन को मोहे
सींचे नदियाँ सारा देश
हरा-भरा मतवाला देश
हर दिन उत्सव यहां मनाते
रीत रिवाजे यहां निभाते
होली और गणगौर पर्व पर
हिल -मिल गीत प्रीत के गाते
पहने रंग- रंगीले वेश
अजब- निराला अपना देश
दीयों का त्यौहार दिवाली
धूम -धड़ाके लेकर आती
भाईचारे -प्रेम की बातें
हमको मीठी ईद सिखाती
नाचे- गाये मौज मनाएँ
वैशाखी देती संदेश
आजादी का दिन जब आता
बलिदानों की याद दिलाता
देश के हित में मर मिटने का
सब बच्चो को पाठ पढाता
झंडा फ़हरे पुरे देश
छैल -छबीला अपना देश

प्रिय राजेश्वरी पारीक "मीना" की प्रेरणा एवं स्मृति में


जिन्दगी
गुनगुनाना जिन्दगी है मुस्कुराना जिन्दगी
सिसकते चेहरों को फिर से खिलखिलाना जिन्दगी
जिन्दगी है एक सुबहा भीनी-भीनी महकती
होंसला गर हो न दिल में साँझ ढलती जिन्दगी
कांटा गर चुभता है पग में कसमसाता है जिगर
दूसरों की पीड़ में हिस्सा बंटाना जिन्दगी
कितने ही मंज़र गुज़र जाते बिना जिए छुए
हर लम्हे को हंस के जीना और जीना जिन्दगी
नफरतों की आग जब तक है धधकती जहन में
जिन्दगी भर रूबरू हो पायेगी न जिन्दगी

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