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Tuesday, February 23, 2010

शिवराज भारतीय की कविता ममता रो मंदिर माँ

नोहर (राजस्थान)
लाड़ प्यार का समंदर मां
मोह-ममता का मंदिर मां
अच्छी-अच्छी बात बताती
लोरी गाए सुलाए मां
धमकाती जब करें शरारत
रूठें तब पुचकारे मां
मनुज भले बूढ़ा हो जाए
उसे समझती बच्चा मां
मां कहने से मुंह भर आता
हृदय नेह सरसाए मां
सारे तीरथ-धाम वहीं पर
जिस घर में मुस्काए मां
मां सम नहीं जगत में दूजा
परमेश्वर भी पूजे मां।
राजस्थानी से अनुवाद-
राजेश्वरी पारीक ‘मीना’
मूल कवि-शिवराज भारतीय

मूल राजस्थानी (शिवराज भारतीय ) हिंदी अनुवाद - राजेश्वरी पारीक "मीना"

रंग- रंगीला अपना देश
अजब -निराला अपना देश
मस्तक मुकुट हिमालय सोहे
सागर इसके चरणन धोये
ताल-तलैया धोरे- पर्वत
रूप सुहाना मन को मोहे
सींचे नदियाँ सारा देश
हरा-भरा मतवाला देश
हर दिन उत्सव यहां मनाते
रीत रिवाजे यहां निभाते
होली और गणगौर पर्व पर
हिल -मिल गीत प्रीत के गाते
पहने रंग- रंगीले वेश
अजब- निराला अपना देश
दीयों का त्यौहार दिवाली
धूम -धड़ाके लेकर आती
भाईचारे -प्रेम की बातें
हमको मीठी ईद सिखाती
नाचे- गाये मौज मनाएँ
वैशाखी देती संदेश
आजादी का दिन जब आता
बलिदानों की याद दिलाता
देश के हित में मर मिटने का
सब बच्चो को पाठ पढाता
झंडा फ़हरे पुरे देश
छैल -छबीला अपना देश

प्रिय राजेश्वरी पारीक "मीना" की प्रेरणा एवं स्मृति में


जिन्दगी
गुनगुनाना जिन्दगी है मुस्कुराना जिन्दगी
सिसकते चेहरों को फिर से खिलखिलाना जिन्दगी
जिन्दगी है एक सुबहा भीनी-भीनी महकती
होंसला गर हो न दिल में साँझ ढलती जिन्दगी
कांटा गर चुभता है पग में कसमसाता है जिगर
दूसरों की पीड़ में हिस्सा बंटाना जिन्दगी
कितने ही मंज़र गुज़र जाते बिना जिए छुए
हर लम्हे को हंस के जीना और जीना जिन्दगी
नफरतों की आग जब तक है धधकती जहन में
जिन्दगी भर रूबरू हो पायेगी न जिन्दगी

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