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Tuesday, February 23, 2010

प्रिय राजेश्वरी पारीक "मीना" की प्रेरणा एवं स्मृति में


जिन्दगी
गुनगुनाना जिन्दगी है मुस्कुराना जिन्दगी
सिसकते चेहरों को फिर से खिलखिलाना जिन्दगी
जिन्दगी है एक सुबहा भीनी-भीनी महकती
होंसला गर हो न दिल में साँझ ढलती जिन्दगी
कांटा गर चुभता है पग में कसमसाता है जिगर
दूसरों की पीड़ में हिस्सा बंटाना जिन्दगी
कितने ही मंज़र गुज़र जाते बिना जिए छुए
हर लम्हे को हंस के जीना और जीना जिन्दगी
नफरतों की आग जब तक है धधकती जहन में
जिन्दगी भर रूबरू हो पायेगी न जिन्दगी

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